गरीब परिवार में, पिता ठाकरसी और माता सारां के घर एक बालक जन्मा। नाम रखा- बिरमा। सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा का देशज रूप। अकाल-अभाव ने 14-15 वर्ष की उम्र में घर छुड़वा दिया। भटकना कहो या देशाटन। पूरा देश देख लिया। लोग देख लिये। समझ में यह आया कि शिक्षा ही कायाकल्प कर सकती है। स्वयं को तो किसी स्कूल कालेज में पढने का अवसर नहीं मिला, पर दूसरे क्यों वंचित रहे । अपने नाम बिरमा- ब्रह्मा को सार्थक करते हुए शिक्षा की सृष्टि रचना शुरू किया। पंजाब हो या राजस्थान, सैंकड़ों स्कूल कालेज खोल दिये। ये स्कूल, छात्रावास, कालेज, पुस्तकालय 100 वर्ष से जन जन को शिक्षा की सुविधा दे रहे हैं। स्वयं बिरमा यानी स्वामी केशवानंद ने अपने लिये एक इंच जमीन, एक ईंट तक नहीं बनाई। सबको अपना परिवार माना। साथ ले गये केवल नेकनामी। पर गये कहां? आज भी जन जन पर उनके वरदहस्त की छत्र छाया है। एक व्यक्ति चाहे तो क्या से क्या कर सकता है- इसका सबसे बड़ा उदाहरण है स्वामी केशवानंद जी का जीवन- संक्षिप्त में प्रस्तुत है यहां -